Tuesday, December 13, 2022

सागर का नाट्य परिदृश्य | लेख | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह, नाट्यलेखिका एवं साहित्यकार

 

Dr (Miss) Sharad Singh, Author,
Novelist, Social Activist
& Drama Writer

लेख

सागर का नाट्य परिदृश्य

- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

नाट्यलेखिका एवं साहित्यकार


(इस लेख की लेखिका के दो नाटक संग्रह ‘‘आधी दुनिया पूरा धूप’’ तथा ‘‘गदर की चिंगारियां’’ प्रकाशित हो चुके हैं। इनके नाटक ‘‘छुईमुई डाॅट काॅम’’ का प्रसार भारती द्वारा देश के बड़े पांच शहरों में मंचन कराया जा चुका है। ये दूरदर्शन, रेडियो तथा यूनीसेफ के लिए भी नाटक लिख चुकी हैं।)                      ........................


सागर की भूमि साहित्य और प्रदर्शनकारी कलाओं के लिए अत्यंत उर्वर है। इस भूमि में कई नाटक रचे गए, कई नाटक मंचित हुए और कई रंगकर्मी देश की बड़ी-बड़ी नाट्य संस्थाओं एवं मिल्मी दुनिया तक पहुंचे हैं। लेकिन इस माटी का मोह उन्हें बार-बार सागर खींच लाता है। चाहे मुकेश तिवारी हों या गोविन्द नामदेव या फिर संगीत श्रीवास्तव ये सभी सागर आ कर नाट्यमंचन द्वारा अपने अतीत की स्मृतियों को ताज़ा करते हैं तथा युवा रंगकर्मियों को मार्ग दिखाते हैं। सागर में इप्टा की इकाई भी रही है जिसके अंतर्गत नुक्कड़ नाटक खेले गए किन्तु आज यहां इप्टा की सागर इकाई के बारे में जानकारी देने वालों की भी कहै। कारण कि लोग धीरे-धीरे अपनी-अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त होते चले गए। सागर के समूचे नाट्य परिदृश्य को जानने के लिए अतीत में झांकने पर पता चला कि आज सागर के नाट्य कौशल को जिस नाट्य संस्था ‘‘अथग’’ के रूप में ख्याति प्राप्त है, इससे पहले एक और नाट्य संस्था यहां बड़ी मेहनत से काम कर चुकी है, जिसका नाम था ‘‘प्रयोग’’। इस संस्था के बारे में सबसे पहले उमाकांत मिश्र जी ने मुझे बताया जो स्वयं उसके नाटकों में अभिनय किया करते थे। फिर जयशेखर परोचे ने चर्चा की। इस संस्था से जुड़े अनिल शर्मा के बारे में उनके भतीजे जो पत्रकारिता विभाग में रहे हैं, डाॅ राकेश शर्मा से चर्चा के दौरान उन्होंने डाॅ विनोद दीक्षित से चर्चा करने का सुझाव दिया। डाॅ विनोद दीक्षित ने बताया कि डाॅ. कल्पना सैनी प्रयोग संस्था की सेक्रेटरी रह चुकी हैं,अतः मुझे उनसे जानकारी लेनी चाहिए। डाॅ. कल्पना सैनी से फोन पर चर्चा के दौरान उन्होंने अपने पति योगेन्द्र सैनी से संवाद कराया। डाॅ. योगेन्द्र सैनी ने मुझे संस्था के बारे में अत्यंत विस्तृत जानकारी दी।

यह पूरा सिलसिला बताने के पीछे मेरा उद्देश्य यह है कि मैंने प्रयास किया है कि सागर का समूचा नाट्य परिदृश्य इस छोटे से लेख में आ जाए किन्तु इसे लिखते समय मुझे लग रहा है कि सागर का नाट्य परिदृश्य एक महासागर है और इसे छोटे- से इस लेख रूपी गागर में नहीं समाया जा सकता है। फिर भी प्रस्तुत हैं कुछ प्रमुख जानकारियां। जो नाम, संदर्भ, प्रसंग छूट रहे हैं, वे इरादतन नहीं वरन सीमावश छूट रहे हैं। 

सागर के वरिष्ठ रंगकर्मी रविंद्र दुबे कक्का से प्राप्त जानकारी के अनुसार सागर में पंडित स्वर्गीय श्री लोकनाथ सिला कारी द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व ‘‘दीवान हरदौल जू’’े नाम से एक नाटक लिखा गया था। 50 के दशक में लिखे गए इस नाटक का मंचन सागर के तत्कालीन रंगकर्मी लक्ष्मी नारायण सिलाकारी, सेन बंधुओं और सर्राफ आदि ने मिलकर किया था। इसी प्रकार इसी समय काल में एक और नाटक का मंचन भी सागर स्थित राधा टॉकीज से लगकर बने एक हॉल में किया गया था, जिसमें अभिनेता और अभिनेत्री के रूप में राजा दुबे एवं रामकली मिश्रण थे। इसके बाद एक उसी दौर में प्रभात भट्टाचार्य के निर्देशन में कालीबाड़ी मंदिर परिसर गोपालगंज में मंचित किया गया था। इस तरह एक दीर्घ परंपरा जुड़ी हुई है सागर के नाटय जगत से।


प्रयोग थिएटर ग्रुप

प्राप्त जानकारी के अनुसार सागर में अन्वेषण थिएटर ग्रुप के पूर्व एक और थिएटर संस्था थी जिसका नाम था - प्रयोग थिएटर ग्रुप। इसे सुप्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के पुत्र विजय चौहान ने स्थापित किया था। इस संबंध में हटा के लोक संस्कृतविद डाॅ श्यामसुंदर दुबे ने भी बताया। युवा उत्सव में चेखव की कहानी का मंचन किया था। प्रयोग संस्था के बैनर तले नाटक ‘‘अंधायुग’’ एवं ‘‘फरार फौज’’ का मंचन भी किया था और इस प्रस्तुति की एक खास बात यह थी कि जीप को चलाकर मंच पर लाया गया था जो अपने आप में सागर के मंच के लिए पहली घटना थी। नाटक ‘‘फरार फौज’’ में डॉ. विजय चौहान, जितेंद्र कुमार शर्मा, सत्येंद्र कुमार तिवारी, विवेकदत्त झा, मल्लिकार्जुन, रमेश दुबे, हंसराज नामदेव, कैलाश चंद्र सिंह आदि ने भी अभिनय किया था। इसमें रमेश दुबे ने मंच एवं मंच से प्रयोग किया था।

प्रयोग थिएटर ग्रुप में सचिव रह चुकी डाॅ. कल्पना सैनी तथा उनसे भी पहले से इस ग्रुप में से संबद्ध रहे उनके पति डाॅ. योगेन्द्र सैनी से विस्तृत चर्चा में प्रयोग संस्था के बारे में अनेक महत्वपूर्ण जानकारी मिली। उस समस्त जानकारी को इस सीमित लेख में दे पाना संभव नहीं है। अतः उस बारे में कभी अलग से स्वतंत्र लेख लिखूंगी। फिर भी कुछ बातें यहां देना चाहती हूं। जैसा कि डाॅ. योगेन्द्र सैनी जी ने बताया कि आरम्भ में महिला पात्र के लिए अभिनेत्रियां नहीं मिलती थीं अतः ऐसे नाटकों का चयन किया जाता था जिसमें सिर्फ़ पुरुष पात्र हों। प्रयोग के द्वारा ‘‘अंधेर नगरी चैपटराजा’’ और ‘‘मैकबेथ’’ जैसे नाटकों का सफलतापूर्वक कई बार मंचन किया गया। उस दिनों नाटकों के लिए किसी भी प्रकार की ग्रांट की व्यवस्था नहीं थी अतः नाट्यदल अपनी क्षमता के अनुसार पैसे कंट्रीब्यूट कर के मंचन के लिए सुविधाएं जुटाता था। बाद में कुछ महिलाएं इसमें बतौर अभिनेत्री जुड़ीं जिन्हें घर पहुंचाने का जिम्मा संस्था के पुरुषों का रहता था। इस संस्था उमाकांत मिश्र, अनिल शर्मा आदि भी जुड़े रहे। वर्तमान में श्यामलम संस्था का संचालन कर रहे उमाकांत मिश्र ने उत्पल दत्त लिखित नाटक ‘‘फरार फौज’’ का ब्रोशर उपलब्ध कराया। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है। ‘‘फरार फौज’’ नाटक का अनुवाद किया था - महेश प्रसाद जयसवाल, नरेन्द्र सिंह, मिहिर चटर्जी तथा विवेकदत्त झा ने। इसका निर्देशन भी मिहिर चटर्जी ने किया था। इसमें बलभद्र तिवारी, रघु ठाकुर, विष्णु पाठक, विवेकदत्त झा, श्रीनाथ शर्मा एवं उमाकांत मिश्र आदि का व्यवस्था से ले कर अभिनय तक सहयोग था।

बाद में प्रो. विजय सिंह चौहान अमेरिका चले गए और इसी तरह कई अन्य सदस्य भी अपनी-अपनी आजीविका के कारण दूसरे शहरों में चले गए। परिणामतः प्रयोग संस्था बंद हो गई। 


अन्वेषण थिएटर ग्रुप 

सागर शहर के गोविंद नामदेव का चयन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली में हो गया था और वहां से निकलने के बाद वह वही रंग मंडल में शामिल होकर रंग कर्म करने लगे थे उनका जब भी सागर घर आना होता था तो वह सागर में स्थानीय शौकिया रंग कर्मियों को रंगकर्म की बारीकियों से अवगत कराया करते थे इसी से प्रेरणा लेकर मुकेश तिवारी, आशुतोष राणा, श्रीवर्धन त्रिवेदी, महेश मेवाती भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली में चयनित हुए और रंगकर्म की विधा में प्रवीणता प्राप्त की। मुकेश तिवारी ने वहां से अध्ययन करने के बाद सागर आकर सबसे पहले नाटक ‘‘कोर्ट मार्शल’’ का निर्देशन किया। सन 1992 में अन्वेषण थिएटर ग्रुप की नींव पड़ी। अन्वेषण थिएटर ग्रुप यानी ’’अथग’’ शौकिया रंग कर्मियों का दल के रूप में मुकेश, पंकज तिवारी, राकेश सोनी, जगदीश शर्मा, आनंद जैन, रविंद्र दुबे कक्का, के निर्देशन में अनेक नाट्य प्रस्तुति सागर सहित दमोह, जबलपुर, बालाघाट, भोपाल, दिल्ली, चंडीगढ़ आदि जगहों पर लगातार करते हुए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से प्राप्त ग्रांट से 18 कलाकारों का संपूर्ण रंगमंडल बना चुका है, जिसके गुरु गोविंद नामदेव हैं।

यहां प्रस्तुत अन्वेषण थिएटर ग्रुप की सम्पूर्ण जानकारी ग्रुप के वरिष्ठ रंगकर्मी रविन्द्र दुबे ‘कक्का के सौजन्य से प्राप्त है। उनका यह सहयोग इस लेख की लेखिका के लिए अति महत्वपूर्ण रहा है। इसमें उनके उस लेख के आधार पर साभार समाहित कर रही हूं जो डाॅ. लक्ष्मी पांडेय द्वारा संपादित ‘‘ये है बुंदेलखंड (भाग-दो)’’ में प्रकाशित हुआ था। बा व कारंत ने सन 1997 में प्रस्तुति परक कार्यशाला में बुंदेलखंड के साथ ही अविभाजित मध्यप्रदेश के सुदूर क्षेत्रों से आए जैसे भोपाल, इटारसी बालाघाट, दुर्ग, भिलाई के रंग कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया था। जयंत देशमुख द्वारा बनाए गए मुक्ताकाश मंच पर सिविल लाइन स्थित मलैया बंगला में लगातार 9 दिन तक इसकी प्रस्तुतियां की गई थी जिन्हें देखने गोविंद नामदेव के साथ मुंबई से सिने अभिनेता अनुपम खेर भी आए थे। हबीब तनवीर जी ने भी भारत भवन के रंग कर्मियों को सागर लाकर अन्वेषण थिएटर ग्रुप के साथ 10 दिवसीय 1998 में आल्हा गायन और रंग कार्यशाला की थी इसमें उन्होंने ‘‘मुद्राराक्षस’’ और ‘‘जिन लाहौर नहीं देख्या, ओ जन्माई नई’’ का पाठ और अभ्यास कराया था। इसमें प्रमुख रूप से अनूप जोशी, विभा मिश्रा, सरोज शर्मा आदि वरिष्ठ रंगकर्मी भी शामिल हुए थे।

मुकेश तिवारी ने अन्वेषण थिएटर ग्रुप में प्रस्तुति पर 35 दिवसीय कार्यशाला आयोजित की थी, कि जिसके अंतर्गत 1996 में ‘‘मुख्यमंत्री’’ नामक नाटक का मंचन किया गया था। अन्वेषण थिएटर ग्रुप को भारतीय रंग महोत्सव में 2003 में प्रथम बार भाग लेने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। इसके बाद दूसरी बार 2024 में जगदीश शर्मा निर्देशित नाटक ‘‘सुदामा के चावल’’ की प्रस्तुति भारतीय रंग महोत्सव में की गई। अन्वेषण थिएटर ग्रुप के द्वारा 1997-98 में रंग कबीर नाट्य समारोह, 1999 में तीन दिवसीय नाट्योत्सव, 2000 में पांच दिवसीय ग्रीष्मकालीन नाट्य महोत्सव, 2018 में चार दिवसीय अन्वेषण नाट्य समारोह आयोजित कर के बाहर के थिएटर ग्रुपों की प्रस्तुतियां सागर में की गई। 

वीर मधुकर शाह बुंदेला के गौरवपूर्ण कार्य और उनके जीवन पर फिल्म अभिनेता गोविंद नामदेव एक नाटक लिखा -‘‘मधुकर कौ कटक’’। इसका निर्देशन भी उन्होंने किया। उनके सह निर्देशक कर थे  मुंबई से आए डायरेक्टर संतोष तिवारी। एनएसडी, अथग और सागर विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में जो एक माह की वर्कशॉप की गई, उसी के प्रशिक्षणार्थियों को अभिनय के लिए चुना गया। यद्यपि कुछ अन्य लोग भी शामिल किया गया। इस नाटक ने सागर के जनमानस में गहरी पैंठ बनाई। 

अन्वेषण थिएटर ग्रुप के सदस्य रहे राकेश सोनी ने सागर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में सेवारत रहते हुए विश्वविद्यालय के छात्रों को लेकर रंगकर्म जारी रखा तथा अनेक बार राष्ट्रीय युवा महोत्सव में प्रथम स्थान प्राप्त किया। अन्वेषण थिएटर ग्रुप ने अनेक रंगकर्मियों को न केवल प्रशिक्षित किया अपितु मंच भी प्रदान किया। अथग ने आशीष ज्योतिषी, पंकज सिंह जार्ज, पदम सिंह, अवधेश कुशवाहा, असरार अहमद, अमजद खान, कपिल नाहर, आशुतोष तिवारी, जयशेखर परोची, राकेश शुक्ला, शिवकांत ढिमोले, अतुल श्रीवास्तव, आशीष चौबे, बृजेश शर्मा, सचिन नायक आदि को स्थापना  दी। 

तथागत नाट्य संस्था

अन्वेषण थिएटर ग्रुप द्वारा गोविंद नामदेव के निर्देशन में आयोजित की गई प्रस्तुति पर कार्यशाला 2013 में नए-नए अनेक रंग कर्मियों ने भाग लिया था इसमें लगभग 55 लोगों ने प्रशिक्षण पाया था। गोविंद नामदेव की कार्यशाला से प्रशिक्षण पाकर निकले कुछ तरुण रंग कर्मियों की टोली ने अन्य ऊर्जावान साथियों को जोड़ कर एक नाट्य ग्रुप बनाया जिसका नाम रखा तथागत नाट्य संस्था। इस संस्था में शुभम उपाध्याय, राहुल वर्मा आशीष तिवारी अप्रतिम मिश्रा विश्वनाथ पटेल संजय आशा डीप गंगा साहू दीक्षा साहू आदित्य, निर्मलकर आदि रंगकर्मी रहे हैं। 

रंग थिएटर फोरम 

थिएटर फोरम कलर के विभिन्न क्षेत्रों के प्रगतिशील कलाकारों का समूह है। क्षेत्र के प्रमुख हिंदी थिएटर समूह में से एक रंग थिएटर फोरम सौंदर्य वाली रूप से नवीन और सामाजिक रूप से प्रासंगिक थिएटर के लिए प्रतिबद्ध है। 2008 में इसकी स्थापना के बाद से रंग थिएटर फोरम ने रंगमंच के प्रशिक्षण के क्षेत्र में अद्भुत कार्य करते हुए देश के अनेक हिस्सों में कार्यशाला का आयोजन किया है जिसमें देश-विदेश के अनेक जाने-माने विद्वानों ने प्रशिक्षण दिया है। थिएटर कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य नए कलाकारों को रंगकर्म के लिए आत्मनिर्भर बनाना है तथा  समकालीन मुद्दों और प्रचलित सामाजिक समस्याओं पर एक संवाद के निर्माण करने हेतु प्रशिक्षित करना है। रंग थिएटर फोरम ने विभिन्न सामाजिक राजनीतिक परिदृश्य के नाटकों का मंचन करते हुए क्षेत्रीय रंगमंच के दृश्य में भी खुद को स्थापित किया है। यह समूह समकालीनता के साथ मनोरंजन के बेहतरीन साधन प्रदान करते हुए हमारी समय की रूपरेखा को रेखांकित कर रहा है।

रंग थिएटर फोरम आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी जैसे प्रसिद्ध साहित्यकार एवं संस्कृतविद्  के नाटकों का भी मंचन कर चुका है। राधावल्लभ त्रिपाठी संस्कृत को आधुनिकता का संस्कार देने वाले विद्वान माने जाते हैं। उनके द्वारा लिखी गई कथा ‘‘विक्रमादित्य कथा’’ एक असाधारण कृति है। संस्कृत के महान गद्यकार महाकवि दंडी पद लालित्य के लिए विख्यात हैं। ‘‘दशकुमार चरित’’ उनकी चर्चित कृति है। परंतु राधावल्लभ त्रिपाठी को उनकी एक और संस्कृत कृति ‘‘विक्रमादित्य कथा’’ की जीर्ण-शीर्ण पांडुलिपि हाथ लग गई। इस कृति को हिंदी में औपन्यासिक रूप देकर डॉ त्रिपाठी ने एक और मूल कृति के स्वरूप की रक्षा की है और वहीं दूसरी ओर उसे एक मार्मिक कथा के रूप में प्रस्तुत किया है। इस कृति से उस युग का नया परिदृश्य उद्घाटित होता है। नाट्य शास्त्र संस्कृत नाटक कार्यशाला 03.23 मार्च 2018 को विश्वविद्यालय में ‘‘विक्रमादित्य कथा’’ का मंचन रंग  थिएटर फोरम द्वारा किया गया था।

फोरम द्वारा 01-15 फरवरी 2021 को प्रोडक्शन वर्कशॅाप आयोजित किया गया था जिसमें संगीत श्रीवास्तव जैसे रंगकर्मी ने आ कर प्रशिक्षण दिया था। संगीत श्रीवास्तव ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से वर्ष 2013 में रंगमंच तकनीक और परिकल्पना में विशेषज्ञता के साथ स्नातक उपाधि प्राप्त की। उसके बाद वे परिकल्पना प्रशिक्षक तथा मार्गदर्शक के रुप में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से जुड़ गए। साथ ही मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय, भारतेंदु नाट्य अकादमी, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय सिक्किम केंद्र आदि नाट्य प्रशिक्षण केंद्रों के शैक्षणिक कार्यक्रमों से भी जुड़े रहे हैं। संगीत श्रीवास्तव ने भारत और विदेश में कई प्रसिद्ध प्रस्तुति निर्माताओं के साथ एक प्रकाश परिकल्पक एवं दृश्य रचनाकार के रूप में सहयोग किया है। एक परिकल्प प्रस्तुति निर्माता और मिक्स मीडिया कलाकार के रूप में 14 देशों में 300 से अधिक प्रस्तुतियां कर चुके हैं। ऐसे रंगकर्मी का आ कर प्रशिक्षण देना सागर के युवा रंगकर्मियों के लिए विशेष अनुभव रहा।


रंग प्रयोग थिएटर ग्रुप

लोक एवं शास्त्रीय रंगमंच तथा लोक संगीत के संवर्धन के उद्देश्य से नगर के सृजन कर्मियों ने सन 2001 में रंग प्रयोग की स्थापना की रंग प्रयोग ने अपनी यात्रा के दौरान लोक एवं शास्त्रीय प्रदर्शनकारी कलाओं के प्रति ना केवल अभिरुचि को जगाया अपितु कार्यशाला हूं उच्च समूह एवं परीक्षाओं के माध्यम से इनके सघन प्रशिक्षण का कार्य भी किया क्षेत्रीय एवं भाषिक सीमाओं को दरकिनार कर मध्य प्रदेश की समस्त लोक एवं शास्त्रीय शैलियों पर केंद्रित प्रस्तुतियां रंग प्रयोग की विशिष्ट पहचान बन चुकी है सन 2001 में 45 दिवसीय नाट्य कार्यशाला तथा नाटक एक था गधा उर्फ अल्लाह दादा की प्रस्तुति नाटक जंगल के शहर की ओर का मंचन बाल प्रतिभाओं के प्रोत्साहन हेतु छह दिवसीय राज्यस्तरीय उत्सव सागर उत्सव 2003 नगर की प्रतिभाओं को अभिनय प्रशिक्षण हेतु श्री आलोक चटर्जी तथा छाऊ नृत्य प्रशिक्षण हेतु श्री माधव वारिक द्वारा सात दिवसीय सघन प्रशिक्षण कार्यशाला। नाटक ‘‘बोझा’’ का मंचन सिने  एवं टेली तकनीक का प्रयोग। ईदगाह जैसे नाटक का मंचन। राजकुमार रायकवार के निर्देशन में यह संस्था सागर तथा सागर से बाहर  निरंतर नाटक करती रहती है।


थर्ड आई परफॉर्मर्स

नाट्य संस्था ‘‘थर्ड आई परफॉर्मर्स’’ की स्थापना 24 मार्च 2020 को शहरी एवं राष्ट्रीय पटल पर कला एवं  कलाओं द्वारा शिक्षा के विकास पर ध्यान केंद्रित करने हेतु किया गया। संस्था का मुख्य उद्देश प्रदर्शनकारी कलाओं का संरक्षण एवं संवर्धन करने के साथ  लोक कलाओं तथा बुंदेली संस्कृति का प्रचार प्रसार करना भी है। सर्व समाज में निर्धन एवं पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए लोक कल्याण में भागीदारी भी हमारा उद्देश्य है ,कोरोना काल के पूर्व संस्था द्वारा 50 दिवसीय नाट्य कार्यशाला के तहत नाटक पीयूष मिश्रा द्वारा लिखित ‘‘गगन दमामा बाज्यो’’ तैयार कराया गया, जिसमे लगभग 40 प्रतिभागियों ने भाग लिया। डा. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक शाखा के संयुक्त तत्वाधान में शहर के विविन्न प्रायोजकों के साथ मिलकर इस नाटक की प्रस्तुति स्वर्ण जयंती सभागार हाल में की गई। वर्ष  2021 को 23 मार्च शहीद दिवस के उपलक्ष्य में संस्था द्वारा एक बार फिर नाटक ‘‘गगन दमामा बाज्यो’’ की तीन प्रस्तुति विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती सभागार में की गईं । अपनी स्थापना से ही यह संस्था नाट्यकला एवं शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने हेतु प्रयासरत है। 

अन्य नाट्य संस्थाएं

सागर में बंसी कॉल के साथ रंग कर्म करने के बाद आकर राजेश शिल्पाचार्य, पद्मसिंह, आनंद,  राजेश पंडित और राजकुमार रैकवार ने सागर में रंगकर्म की धारा प्रवाहित करने में अपना योगदान दिया। सागर में थर्डबेल, भारतीय नाट्य कला मंच, सरस, रंग प्रयोग, रंग खोज, युवा थिएटर ग्रुप, नाट्य परिषद, तरुण सांस्कृतिक आर्ट, दर्पण थिएटर ग्रुप आदि जैसे रंगकर्मियों के समूहों ने समय-समय पर नाटकों का मंचन करके सागर में नाट्य-मंचन की परंपरा को बनाए रखने में अपना महत्वूर्ण योगदान दिया है।

सागर में नाट्यविधा के सम्पन्नता से परिपूर्ण वर्तमान परिदृश्य को देख कर आश्वस्त हुआ जा सकता है कि यहां नाट्य विधा अभी और परवान चढ़ेगी और देश के नक्शे में अपनी अलग पहचान स्थापित करेगी।

                   --------------------------

(12.12.2022)

No comments:

Post a Comment