वतन पे मरने वालों की कहानी दुनिया कहती है
- डॉ शरद सिंह
11 अगस्त 2020 ... आज स्मरण कर रही हूं सागर शहर के शहीद प्रदीप लारिया का जो नक्सलियों के हाथों मारे गए थे और उस समय उनकी आयु मात्र 23 वर्ष थी। सागर शहर को उन पर गर्व है।
"मां जिंदगी और मौत तो ऊपर वाले के हाथ में होती है। मेरे लिए देश सेवा से बढ़कर कुछ भी नहीं है। इसमें भले ही मेरे प्राण क्यों न चले जाएं...।" प्रदीप लारिया ने अपनी मां से कहा था।
11 अगस्त 2002 को जब प्रदीप अपने साथियों के साथ उड़ीसा के गोदाल पादर जिले के गुनुपुर गांव के पास गश्त कर रहे थे, तभी वहां नक्सलियों ने उनके वाहन को सुरंग में ब्लास्ट कर उड़ा दिया था। धमाके में वाहन समेत प्रदीप करीब 25 फीट दूर फिका गए थे। ज़मीन पर गिरते ही अपने साथियों से उनके पहले शब्द थे कि "दुश्मनों को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं है, चाहे कुछ भी हो जाए।" बस इतना कहते ही उनकी आंखें हमेशा के लिए बंद हो गई। उनके पार्थिव शरीर को स्वतंत्रता दिवस के दिन सागर लाया गया था और पूरे सम्मान के साथ पंचतत्व में विलीन किया गया था।
14 जून 1979 को जन्मे प्रदीप लारिया की बाल्यावस्था में ही सिर से पिता का साया उठ गया था। घर की आर्थिक स्थिति कमज़ोर थी। लेकिन एनसीसी में अच्छे प्रदर्शन के कारण सीआरपीएफ में आसानी से चयन हो गया। इस बीच उनका विवाह भी हो गया। मात्र एक साल नौकरी करने के बाद नक्सली हमले में शहीद हो गए। सागर के लाजपतपुरा वार्ड निवासी प्रदीप लारिया बेहतरीन क्रिकेटर भी थे। उनके मोहल्ले के सभी लोग उन्हें जडेजा कहकर बुलाते थे। आज सभी उनका स्मरण कर गर्व से भर उठते हैं।
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