Dr (Miss) Sharad Singh |
लेख
राहतगढ़ का किला
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
बुंदेलखंड में कई किले भारत के स्वाधीनता संग्राम के साक्षी रहे हैं। इसमें से एक है राहतगढ़ का किला। राहतगढ़ किले की बनावट सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। किले में दरवाजे सुरक्षा चैकपोस्ट की तरह बनाये गये हैं। किले में प्रवेश करने के लिये कई दरवाजों से होकर जाना पड़ता है। किले की बाहरी दीवारों के साथ सुरक्षा चौकियों के अवशेष भी दिखाई देते हैं। पहाड़ी बहुत उंची है और किले की बनावट ऐसी है कि आक्रमणकारियों को दूर से ही निशाना लगाया जा सके। किला उंची चहारदीवारी से घिरा हुआ है जिसमें सुरक्षा चौकियां बनी हुई हैं। किले के दक्षिण किनारा बीना नदी के भयावह खाई से लगा हुआ है। इस खाई से होकर किले में प्रवेश कर पाना असंभव प्रतीत होता है। इस खाई के किनारे भी सुरक्षा चौकियां निर्मित हैं। राहतगढ़ के इस किले पर विजय पाना बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है।
Rahat Garh Fort, Sagar Madhya Pradesh |
किले के अंदर बहुत सी सुंदर इमारतें मौजूद हैं। कुछ इमारतों का निर्माण ईंट से किया गया है। अधिकांश इमारतों के निर्माण पत्थरों से किया गया है। चटृानों को काटकर यहां पर एक तालाब का निर्माण कराया गया था। इस तालाब में वर्ष पर्यंत पानी उपलब्धं रहता है। तालाब में उतरने के लिये सीढियां बनवाई गईं हैं।
Rahat Garh Fort Gate, Sagar Madhya Pradesh |
सन् 1857 के विद्रोह के बाद जब ब्रिटिश अधिकारी ह्यूरोज सेना लेकर झांसी की ओर बढ़ रहा था। तब उसका सामना बुंदेलखंड के योद्धाओं से हुआ। शाहगढ़, बानपुर के जवानों ने ह्यूरोज के सैनिकों को कड़ी टक्कर दी। गढ़ाकोटा व सागर पर अधिकार करने के बाद ह्यूरोज का लक्ष्य राहतगढ़ का किला था। ह्यूरोज, अन्य अधिकारियों हैमिल्टन व पेंडर गोस्ट की टुकड़ियों के साथ जबलपुर से गढ़ाकोटा आया। यहां दो दिन रुककर सैनिक राहतगढ़ की ओर बढ़ा दिए।
Rahat Garh Fort, Sagar Madhya Pradesh |
इतिहासकार बाबूलाल द्विवेदी द्वारा संपादित पुस्तक बानपुर और बुंदेलखंड व गजेटियर के मुताबिक ब्रिटिश सेना ने रात में ही राहतगढ़ दुर्ग को चारों ओर से घेर लिया और सुबह होते ही दुर्ग पर गोलाबारी शुरू कर दी। किले में सागर की 49वीं पैदल सेना के विद्रोही सैनिक थे। वे सहायता के लिए शाहगढ़, बानपुर और राजा मर्दन सिंह को पहले ही मदद के लिए पत्र लिख चुके थे। दुर्ग की सुरक्षा की विद्रोही सैनिकों ने कोई व्यवस्था नहीं की थी। इस वजह से वे किले में घिरकर रह गए। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि विद्रोही सेना में एक भी अधिनायक ऐसा नहीं था, जो युद्ध की सभी विधाओं से भली-भांति परिचित हो।
इसके बावजूद राहतगढ़ के किले से विद्रोही सैनिकों ने ब्रिटिश सेना की गोलाबारी का पूरा जवाब दिया। इसी बीच, राहतगढ़ दुर्ग में घिरे सैनिकों का पत्र मिलते ही शाहगढ़ व बानपुर की संयुक्त सेनाएं भी राहतगढ़ की ओर कूच कर चुकी थीं। सुबह से तीन घंटे ही युद्ध चल पाया कि राहतगढ़ पर घेरा डालने वाली ब्रिटिश सेना ने खुद को घिरा हुआ पाया। जवाहर सिंह, हिम्मत सिंह, मलखान सिंह जालंधर वालों ने ब्रिटिश सेना पर चारों ओर से घेरा डालकर हमला शुरू कर दिया था।
एक- एक विद्रोही सैनिक को दुर्ग से निकाला था बाहर रू संयुक्त सेनाओं से युद्ध इतना लंबा चला कि अंत में गोलियों का स्थान सांगों और भालों ने ले लिया। हिम्मत सिंह की टुकड़ी को सफलता मिली। वे किले में घिरे एक-एक सैनिक को निकालने में सफल रहे। अंततरू दुर्ग पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया।
ब्रिटिश सैनिकों को इस घेरे का तब पता चला जब उनकी पीठ पर गोलियां चलने लगीं। ह्यूरोज कुछ क्षणों के लिए इस दोतरफा मार से घबरा उठा। लेकिन उसने तुंरत आधी सेना का रुख बाहर से घेरा डालने वाली शत्रु सेना की ओर कर दिया। मर्दन सिंह और बखतबली की सेनाएं ब्रिटिश सेना के प्रतिरोध की परवाह न करके शत्रु सेना की ओर बढ़ने लगीं। हिम्मत सिंह अपने चुने हुए साथियों के साथ आगे बढ़े और किले के मुख्य द्वार की ओर ब्रिटिश सेना को हटाते हुए मार्ग बनाने लगे।
Dr (Miss) Sharad Singh at Rahat Garh Waterfall, Sagar Madhya Pradesh |
सागर जिले में स्थित राहतगढ़ में बीना नदी के किनारे पहाड़ी पर यह एक विशाल व भव्य किला है। महाराजा संग्राम शाह के पूर्व यहां पर चंदेल और परमार शासकों ने शासन किया। महारानी दुर्गावती एवं वीरनारायण की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी राजा चंद्रशाह को गोंडवाना साम्राज्य का राजा बनाने के लिए अकबर को जो दुर्ग देने पड़े उनमें से एक राहतगढ़ किला भी था। इस किले की बनावट सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। किले की बाहरी दीवारों के साथ सुरक्षा चैकियों के अवशेष भी दिखाई देते हैं। पहाड़ी बहुत ऊंची है और किले की बनावट ऐसी है कि आक्रमणकारियों पर दूर से ही निशाना लगाया जा सकता है। किला ऊंची चहारदीवारी से घिरा है जिसमें सुरक्षा चैकियां बनी हैं। किले के दक्षिण किनारा बीना नदी की खाई से लगा हुआ है। इस खाई से होकर किले में प्रवेश कर पाना असंभव सा है।
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राहतगढ़ किले के बारे में पढ़कर महत्तवपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई। हमारे देश में ऐसे न जाने कितने किले है को इतिहास का सुंदर अध्याय हमारे सामने खोलते हैं
ReplyDeleteबहुत सुंदर तथ्य परक आलेख.
सादर