Wednesday, July 19, 2023

चर्चा प्लस | गागर में सागर है सागर का नाट्य संसार - दूसरा भाग | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

Dr (Miss) Sharad Singh, Ashadh Ka Ek Din, ATHAG

Charcha Plus  by Dr (Miss) Sharad Singh


चर्चा प्लस  

गागर में सागर है सागर का नाट्य संसार
                - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह 

 
 (दूसरा भाग)
सागर के यशस्वी नाट्य संसार के संबंध में चर्चा के प्रथम खंड में आपने पढ़ा यहां की तीन नाट्य संस्थाओं के बारे में - प्रयोग, अन्वेषण थिएटर ग्रुप तथा तथागत नाट्य संस्था। इनमें प्रयोग एवं अन्वेषण थिएटर ग्रुप को शहर की बुनियादी संस्था का दर्ज़ा दिया जा सकता है। इन संस्थाओं से जुड़े रहे व्यक्तित्व आज भी इस शहर को ख्याति दिला रहे हैं। जहां एक ओर गोविन्द नामदेव, मुकेश तिवारी, आशुतोष राणा आदि बाॅलीवुड में स्थापना पा चुके हैं, वहीं रघु ठाकुर आज गांधीवादी चिंतक के रूप में सुपरिचित व्यक्तित्व हैं। उमाकांत मिश्र आज शहर में ‘‘श्यामलम’’ नामक संस्था के द्वारा साहित्य, संस्कृति एवं कला के विकास की अलख जगाए हुए हैं। शहर की नाट्य संस्थाओं के क्रम में पढ़िए कुछ और सक्रिय नाट्य संस्थाओं के बारे में।
Sagar ka natya sansar -2 , Charcha Plus, Dr (Miss) Sharad Singh


इस लेख के प्रथम भाग के प्रकाशन के उपरांत मेरे व्हाट्सएप्प पर एक आपत्ति मेरे पास आई जिसमें कुछ तथ्यों के छूटने एवं त्रुटिपूर्ण होने के प्रति विरोध जताया गया था। किन्तु दुख है कि आपत्तिकर्ता ने वास्तविक तथ्यों से मुझे अवगत नहीं कराया।    वैसे मुझे प्रसन्नता हुई कि आपत्तिकर्ता ने मेरे लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ा। यदि वे वास्तविक तथ्यों को मुझसे साझा करते तो मुझे और भी अधिक प्रसन्नता होती। कमियां हर लेख में होती हैं, उन्हें दूर करने में मदद करना एक उत्तम कार्य है। जैसा कि साहित्यकार डाॅ. अशोक मनवानी ने मेरे लेख को पढ़ कर सौजन्यतापूर्वक मुझे कई जानकारियां मेरे फेसबुक पर दीं, जिनमें कई तथ्य मुझे पहले ज्ञात नहीं हो सके थे। मैं डाॅ. अशोक मनवानी की आभारी हूं तथा उनके द्वारा प्रदत्त जानकारी साभार यहां शामिल कर रही हूं। उन्होंने अपनी तीन टिप्पणियों में क्रमशः लिखा कि -
प्रथम टिप्पणी - ‘‘श्री विवेक दत्त झा , प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति और पुरातत्व विभाग में प्रोफेसर थे। रंगमंच से जुड़े रहे। आजाद विद्यार्थी सांस्कृतिक संगठन ने 1981 में पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज के सभाकक्ष में प्रेमचंद जी लिखित आहुति का मंचन किया इसमें जगदीश सोनी कमलेश पाराशर ,श्यामाकांत दुबे की भूमिका थी। मैंने भी स्वतंत्रता सेनानी की भूमिका की थी। गोपालगंज में गुप्ता जी कोरियोग्राफी और नाटक अभिनय सिखाते थे, वे निर्देशन भी करते थे।’’
द्वितीय टिप्पणी -‘‘वर्ष 1967 में विश्व विद्यालय ऑडिटोरियम में एक सिंधी भाषा का नाटक हुआ। ‘‘एस्क्यूज मी मिस्टर बाल्मीकि’’ इसका निर्देशन मेरे पिता प्रोफेसर एस एन मनवानी ने किया था। इस नाटक में श्री अमोल सिंह पिंजवानी, प्रताप फुलवानी सेवकराम आदि ने भूमिका की। एडवोकेट चंद्र या चंदू भाई (शास्त्री मार्केट में इनका ऑफिस था कुछ साल पहले तक) इसमें एक किरदार थे।’’
तृतीय टिप्पणी -‘‘संभागीय उत्सव प्रारंभ हुए तो बीवी कारंत जी 1982 या 1983 में चर्चित नाटक ‘‘इंसाफ का घेरा’’ बुंदेली में लेकर आए ,जो काकेशियन चाक सर्किल का अनुवाद था। सागर के स्टेडियम के मंच पर इसकी प्रस्तुति हुई। दर्शक कम थे हालांकि। सागर के तीन स्थानीय कलाकार भी लिए गए जिनमें मैं भी एक था। संस्कृति विभाग ने इसी मौके पर एमएलबी विद्यालय के मंच पर कुमार गंधर्व जी का शास्त्रीय गायन भी संभागीय उत्सव के अंतर्गत रखा था। रश्मि वाजपेयी जी का नृत्य भी।’’

इसी प्रकार कवि एवं राजनीतिज्ञ डाॅ आशीष ज्योतिषी ने भी फेसबुक पर मेरे लेख के तारतम्य में दो टिप्पणियों के रूप में मुझे महत्वपूर्ण जानकारी दी कि -
प्रथम टिप्पणी - ‘‘मैंने अथग और सागर विश्वविद्यालय में अनेक नाटक किए है, जिनमे कोर्ट मार्शल, अंधायुग, मुख्यमंत्री, कंजूस, धुआँ में किरदार निभाए, नुककड़ नाटक किए।’’
द्वितीय टिप्पणी - ‘‘पं ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी सागर के रंगमंच का पहला नाम है जिन्होंने अंतिम ओज, अजेय भारत, इंकलाब की आवाज, नारद निर्वाण, जय भारत माता जैसे नाटकों की रचना की। बल्कि आजादी के पूर्व अजेय भारत और अंतिम ओज का मंचन किया और निर्देशन किया। उस दौर मै महिला पात्र भी पुरुष किया करते थे। दुर्गा नाई महिला किरदार निभाते थे।’’

मैं आभारी हूं डाॅ आशीष ज्योतिषी की जिन्होंने जानकारी दे कर मेरे ज्ञान में वृद्धि की। निश्चित रूप से अभी भी मेरे इस पूरे लेख में अनेक तथ्य छूटे हुए होंगे क्योंकि बहुत प्रयास करने पर भी कई बार बहुत सी बातें पता नहीं चल पाती हैं जबकि मैं चाहती हूं कि सागर के नाट्य जगत की अधिक से अधिक जानकारी हर व्यक्ति तक पहुंचे। अतः लेख के इस दूसरे भाग को पढ़ते हुए यदि किसी को कुछ स्मृतियां कौंधे तो मुझसे अवश्य साझा करें।
यहां मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगी कि यह लेख लिखना अथवा इस लेख की सामग्री को जुटाना किसी अर्थलाभ वाले प्रोजेक्ट के तहत नहीं है, अपितु सागर की साहित्यिक, सांस्कृतिक गरिमा को सभी की स्मृतियों से जोड़े रखने का मेरा निःस्वार्थ उपक्रम है। अतः इसमें अपने ज्ञान का सहयोग मुझे दे सकते हैं। मैं रंगमंच की व्यक्ति नहीं हूं किन्तु मुझे रंगमंच से अगाध लगाव है। थिएटर मुझे लुभाता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे लखनऊ, दिल्ली, जयपुर तथा भोपाल में जोहरा सहगल, नादिरा बब्बर, इब्राहिम अलकाजी, मोहन शशि जैसे प्रतिष्ठित रंगकर्मियों से मिलने तथा चर्चा करने का सुअवसर मिला। लखनऊ ललित सिंह पोखरिया जी के साथ एक नाट्यलेखन वर्कशाप में लेखकीय कार्य किया। मैंने रेडियो के लिए अनेक धारावाहिक नाटक लिखे तथा दूरदर्शन के लिए प्रहसन लिखी। मेरा लिखा नाटक ‘‘बीवी ब्यूटी क्वीन’’ का प्रसार भारती, भारत सरकार द्वारा दिल्ली, आगरा, लखनऊ, कानपुर आदि देश के पांच शहरों में मंचन किया गया था।

उल्लेखनीय है कि मेरे दो नाटक संग्रह ‘‘गदर की चिंगारियां’’ तथा ‘‘आधी दुनिया पूरी धूप’’ प्रकाशित हो चुके हैं। खैर, अपने बारे में यह सारी जानकारी देने का उद्देश्य मात्र यही है कि मैं रेडियो नाट्य लेखन, फीचर तथा डाक्यूमेंट्री स्क्रिप्ट लेखन तथा मंचीय नाटकों में गहरी दिलचस्पी रखती हूं। मेरा यही लगाव मुझे अपने शहर के रंगमंच पर कुछ न कुछ लिखने के लिए प्रेरित करता रहता है।
समय के साथ अनेक तथ्य विस्मृति की फाईल में बंधते चले जाते हैं। यदि बातें न दोहराई जाएं तो उन्हें भूलने का क्रम आरंभ हो जाता है। आज बहुत कम लोगों को पता है कि आज जिन्हें हम गांधीवादी चिंतक, समाजसेवी एवं राजनीतिज्ञ के रूप में जानते हैं, वे रघु ठाकुर जी कभी रंगमंच पर सक्रिय थे। निश्चित रूप से यह जानकारी हमें उतनी ही चौंकाती है जितनी कि यह जानकारी कि साहित्य, कला, भाषा एवं संस्कृति के उन्नयन के लिए सतत क्रियाशील श्यामलम संस्था के अध्यक्ष उमाकांत मिश्र भी संगीत वाद्य कांगो प्लेयर होने के साथ ही रंगमंच के हर स्तर से सक्रियता से जुड़े रहे हैं। स्व. प्रो. विवेकदत्त झा जिन्होंने पुरातत्व के क्षेत्र में उल्लेखनीय उत्खनन तथा अन्वेषण किए और भरतीय इतिहास के कई खोए हुए पन्ने ढूंढ निकाले, वे भी रंगकर्मी थे। प्रो. बलभद्र तिवारी ने बुंदेली लोक साहित्य पर महत्वपूर्ण कार्य किया। वे भी रंगमंच पर सक्रिय रहे।

सागर के मंचों पर भी मोहन राकेश के प्रसिद्ध नाटक ‘‘आषाढ़ का एक दिन’’ कई बार मंचित हो चुका है। यह नाटक मुझे व्यक्तिगत रूप से हमेशा रोमांचित कर देता है। इसका मेरा एक निजी कारण यह है कि इप्टा की पन्ना इकाई द्वारा पन्ना जिला मुख्यालय में मंचित किए गए ‘‘आषाढ़ का एक दिन’’ में मेरी दीदी स्व. डाॅ. वर्षा सिंह ने नाटक की नायिका मल्लिका की मां ‘‘अंबिका’’ का रोल अभिनीत किया था। अतः अब जब भी मैं इस नाटक को मंचित होते देखती हूं तो अंबिका में मैं अपनी दीदी डाॅ. वर्षा सिंह की छवि तलाशने लगती हूं। यह नाटक इसलिए भी मुझे रोमांचित करता है क्योंकि इसे देश के लगभग सभी नामचीन रंगमंच निर्देशकों ने निर्देशित किया है। इब्राहिम अलकाजी, ओम शिवपुरी, अरविंद गौड़, श्यामानंद जालान, राम गोपाल बजाज इसे अपना पसंदीदा नाटक मानते आए। इब्राहिम अलकाजी का कहना था कि -‘‘यह नाटक मानवीय भावनाओं हर पक्ष को अपनी सम्पूर्णता के साथ सामने रखता है।’’ फिल्म निर्देशक मणि कौल भी इस नाटक से प्रभावित रहे और इसीलिए उन्होंने 1971 में इस नाटक पर आधारित ‘‘आषाढ़ का एक दिन’’ नाम से फिल्म बनाई, जिसे वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ‘‘फिल्म फेयर पुरस्कार’’ दिया गया। इसमें कालिदास की भूमिका अरुण खोपकर ने तथा मल्लिका की भूमिका रेखा सबनीस ने निभाई थी।
ऐसे प्रतिष्ठित नाटकों को सागर के रंगमंच पर अपने सीमित साधनों द्वारा सफलतापूर्वक मंचित किया जाना किसी चुनौती को पूरा कर लेने से कम नहीं है। चलिए, सागर शहर के कुछ और थिएटर ग्रुप्स पर दृष्टिपात करते हैं। यूं तो मैं अपने इस लंबे लेख को दो किस्त में ही समाप्त करने वाली थी लेकिन जानकारियों में वृद्धि तथा व्यक्तिगत जानकारी शामिल करने के कारण इसे अगली किस्त में समाप्त कर सकूंगी। तो पढ़िए इस दूसरी किस्त में कुछ और थिएटर ग्रुप्स के बारे में संक्षिप्त जानकारी। वैसे यह अगली किस्त में भी जारी रहेगी।
 
रंग थिएटर फोरम
थिएटर फोरम कलर के विभिन्न क्षेत्रों के प्रगतिशील कलाकारों का समूह है। क्षेत्र के प्रमुख हिंदी थिएटर समूह में से एक रंग थिएटर फोरम सौंदर्य वाली रूप से नवीन और सामाजिक रूप से प्रासंगिक थिएटर के लिए प्रतिबद्ध है। 2008 में इसकी स्थापना के बाद से रंग थिएटर फोरम ने रंगमंच के प्रशिक्षण के क्षेत्र में अद्भुत कार्य करते हुए देश के अनेक हिस्सों में कार्यशाला का आयोजन किया है जिसमें देश-विदेश के अनेक जाने-माने विद्वानों ने प्रशिक्षण दिया है। थिएटर कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य नए कलाकारों को रंगकर्म के लिए आत्मनिर्भर बनाना है तथा  समकालीन मुद्दों और प्रचलित सामाजिक समस्याओं पर एक संवाद के निर्माण करने हेतु प्रशिक्षित करना है। रंग थिएटर फोरम ने विभिन्न सामाजिक राजनीतिक परिदृश्य के नाटकों का मंचन करते हुए क्षेत्रीय रंगमंच के दृश्य में भी खुद को स्थापित किया है। यह समूह समकालीनता के साथ मनोरंजन के बेहतरीन साधन प्रदान करते हुए हमारी समय की रूपरेखा को रेखांकित कर रहा है।

रंग थिएटर फोरम आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी जैसे प्रसिद्ध साहित्यकार एवं संस्कृतविद्  के नाटकों का भी मंचन कर चुका है। राधावल्लभ त्रिपाठी संस्कृत को आधुनिकता का संस्कार देने वाले विद्वान माने जाते हैं। उनके द्वारा लिखी गई कथा ‘‘विक्रमादित्य कथा’’ एक असाधारण कृति है। संस्कृत के महान गद्यकार महाकवि दंडी पद-लालित्य के लिए विख्यात हैं। ‘‘दशकुमार चरित’’ उनकी चर्चित कृति है। परंतु दिलचस्प बात यह है कि राधावल्लभ त्रिपाठी जी को उनकी एक और संस्कृत कृति ‘‘विक्रमादित्य कथा’’ की जीर्ण-शीर्ण पांडुलिपि हाथ लग गई। इस कृति को हिंदी में औपन्यासिक रूप देकर प्रो. त्रिपाठी ने जहां एक और मूल कृति के स्वरूप की रक्षा की है और वहीं दूसरी ओर उसे एक मार्मिक कथा के रूप में प्रस्तुत किया है। इस कृति से उस युग का नया परिदृश्य उद्घाटित होता है। नाट्य शास्त्र संस्कृत नाटक कार्यशाला 03 से 23 मार्च 2018 को विश्वविद्यालय में ‘‘विक्रमादित्य कथा’’ का मंचन रंग थिएटर फोरम द्वारा किया गया था।

फोरम द्वारा 01-15 फरवरी 2021 को प्रोडक्शन वर्कशॅाप आयोजित किया गया था जिसमें संगीत श्रीवास्तव जैसे रंगकर्मी ने आ कर प्रशिक्षण दिया था। संगीत श्रीवास्तव ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से वर्ष 2013 में रंगमंच तकनीक और परिकल्पना में विशेषज्ञता के साथ स्नातक उपाधि प्राप्त की। उसके बाद वे परिकल्पना प्रशिक्षक तथा मार्गदर्शक के रुप में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से जुड़ गए। साथ ही मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय, भारतेंदु नाट्य अकादमी, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय सिक्किम केंद्र आदि नाट्य प्रशिक्षण केंद्रों के शैक्षणिक कार्यक्रमों से भी जुड़े रहे हैं। संगीत श्रीवास्तव ने भारत और विदेश में कई प्रसिद्ध प्रस्तुति निर्माताओं के साथ एक प्रकाश परिकल्पक एवं दृश्य रचनाकार के रूप में सहयोग किया है। एक परिकल्प प्रस्तुति निर्माता और मिक्स मीडिया कलाकार के रूप में 14 देशों में 300 से अधिक प्रस्तुतियां कर चुके हैं। ऐसे रंगकर्मी का आ कर प्रशिक्षण देना सागर के युवा रंगकर्मियों के लिए विशेष अनुभव रहा।

मुझे आशा है कि मेरे लेख की इस दूसरी किस्त को पढ़ने के उपरांत विद्वतजन कुछ और जानकारियां मुझसे साझा करेंगे, जिन्हें मैं इस लेख की अगली एवं अंतिम किस्त में शामिल कर सकूंगी। संभवतः कुछ ऐसे नाट्य ग्रुप भी रहे हों जिन्होंने बहुत ही छोटे स्तर पर अथवा मात्र नुक्कड़ के रूप में नाट्य प्रदर्शन किया हो और वे मेरी जानकारी में अब तक नहीं आ सकें है तो यदि किसी को उनके बारे में जानकारी हो तो वे मुझे अवगत करा सकते हैं। अन्यथा मुझे प्राप्त जानकारी का शेष भाग मैं अपने अगले लेख में आप सबके सामने रखूंगी ही। (क्रमशः)  
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चर्चा प्लस | गागर में सागर है सागर का नाट्य संसार -प्रथम भाग | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

Dr (Miss) Sharad Singh look the stage of Rang Prayog Theater Group play Birsa Munda


Characha Plus, Dr (Miss) Sharad Singh


 चर्चा प्लस  

गागर में सागर है सागर का नाट्य संसार
        - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह  
         सागर की भूमि साहित्य और प्रदर्शनकारी कलाओं के लिए अत्यंत उर्वर है। इस भूमि में कई नाटक रचे गए, कई नाटक मंचित हुए और कई रंगकर्मी देश की बड़ी-बड़ी नाट्य संस्थाओं एवं मिल्मी दुनिया तक पहुंचे हैं। लेकिन इस माटी का मोह उन्हें बार-बार सागर खींच लाता है। चाहे मुकेश तिवारी हों या गोविन्द नामदेव या फिर संगीत श्रीवास्तव ये सभी सागर आ कर नाट्यमंचन द्वारा अपने अतीत की स्मृतियों को ताज़ा करते हैं तथा युवा रंगकर्मियों को मार्ग दिखाते हैं। सागर में इप्टा की इकाई भी रही है जिसके अंतर्गत नुक्कड़ नाटक खेले गए। सागर भले ही एक छोटा शहर है लेकिन इसका नाट्य संसार विस्तृत है। संक्षिप्त करते हुए भी यह जानकारी दो भाग में सिमट पा रही है। तो लेख का पहला भाग प्रस्तुत है आज।


प्रथम भाग :
बुंदेलखंड का एक छोटा-सा शहर जो बड़ा बनने के लिए जी तोड़ प्रयास कर रहा है, उसका नाम है सागर। कला और संस्कृति का धनी। कुछ समय पहले मुझे सागर के नाट्य संसार को खंगालने का अवसर मिला। किसी ने इस संबंध में मुझसे कुछ जानकारी चाही थी। बस, इसी सिलसिले में मैंने सागर की उन सारी संस्थाओं का पता लगाने के लिए कमर कस ली जो नाट्यकला से जुड़ी रही हैं। कुछ पता चला, बहुत कुछ शायद अभी भी छूटा हुआ हो। बहरहाल, जो भी जानकारी मुझे मिली वह संक्षेप में इस चर्चा प्लस के रूप में दे रही हूं। इसमें मैंने अपना ध्यान उन संस्थाओं और मंचन पर केन्द्रित रखा है जो विश्वविद्यालय के परफार्मिंग आर्ट विभाग के इतर नाट्य मंचन करते रहे, भले ही विश्वविद्यालय में कार्यरत व्यक्ति उससे जुड़े हुए थे। जितना मैंने खंगाला, जितना मैंने जाना वह गर्व करने योग्य है।
सागर के समूचे नाट्य परिदृश्य को जानने के लिए अतीत में झांकने पर पता चला कि आज सागर के नाट्य कौशल को जिस नाट्य संस्था ‘‘अथग’’ के रूप में ख्याति प्राप्त है, इससे पहले एक और नाट्य संस्था यहां बड़ी मेहनत से काम कर चुकी है, जिसका नाम था ‘‘प्रयोग’’। इस संस्था के बारे में सबसे पहले साहित्य, कला और संस्कृति के लिए समर्पित श्यामलम संस्था के अध्यक्ष उमाकांत मिश्र जी ने मुझे बताया। वे स्वयं ‘‘प्रयोग’’ के नाटकों में अभिनय किया करते थे। इस संस्था से जुड़े अनिल शर्मा के बारे में उनके भतीजे जो डाॅ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में रहे हैं, डाॅ राकेश शर्मा से मेरी चर्चा हुई। चर्चा के दौरान डाॅ राकेश शर्मा ने डाॅ विनोद दीक्षित से जानकारी लेने का सुझाव दिया। जब मैंने डाॅ विनोद दीक्षित से बात की तो उन्होंने बताया कि डाॅ. कल्पना सैनी प्रयोग संस्था की सेक्रेटरी रह चुकी हैं, अतः मुझे उनसे जानकारी लेनी चाहिए। डाॅ. कल्पना सैनी से फोन पर चर्चा के दौरान उन्होंने अपने पति योगेन्द्र सैनी से संवाद कराया। इस तरह एक दीर्घ चर्चा श्रृंखला क बाद मैं उस व्यक्ति तक जा पहुंची जिनसे मुझे महत्वपूर्ण जानकारी मिली। जी हां, डाॅ. योगेन्द्र सैनी ने मुझे संस्था के बारे में अत्यंत विस्तृत जानकारी दी।

यह पूरा सिलसिला बताने के पीछे मेरा उद्देश्य यह है कि मैंने प्रयास किया है कि सागर का समूचा नाट्य परिदृश्य इस छोटे से लेख में आ जाए किन्तु इसे लिखते समय मुझे लग रहा है कि सागर का नाट्य परिदृश्य एक महासागर है और एक लेख रूपी गागर में नहीं समाया जा सकता है। फिर भी प्रस्तुत हैं कुछ प्रमुख जानकारियां। जो नाम, संदर्भ, प्रसंग छूट रहे हैं, वे इरादतन नहीं वरन कुछ सीमावश और कुछ अज्ञानतावश छूटे हैं।
सागर के वरिष्ठ रंगकर्मी रविंद्र दुबे कक्का से प्राप्त जानकारी के अनुसार सागर में पंडित स्व.  लोकनाथ सिलाकारी द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व ‘‘दीवान हरदौल जू’’ नाम से एक नाटक लिखा गया था। पचास के दशक में लिखे गए इस नाटक का मंचन सागर के तत्कालीन रंगकर्मी लक्ष्मी नारायण सिलाकारी, सेन बंधुओं और सर्राफ आदि ने मिलकर किया था। इसी प्रकार इसी समय एक और नाटक का मंचन भी सागर स्थित राधा टॉकीज से लगकर बने एक हॉल में किया गया था, जिसमें अभिनेता और अभिनेत्री के रूप में राजा दुबे एवं रामकली मिश्रा थे। इसके बाद एक नाटक उसी दौर में प्रभात भट्टाचार्य के निर्देशन में कालीबाड़ी मंदिर परिसर गोपालगंज में मंचित किया गया था। इस तरह एक दीर्घ परंपरा जुड़ी हुई है सागर के नाटय जगत से।
Sagar Ka Natya Sansar-1, Characha Plus, Dr (Miss) Sharad Singh


प्रयोग थिएटर ग्रुप
प्राप्त जानकारी के अनुसार सागर में अन्वेषण थिएटर ग्रुप के पूर्व एक और थिएटर संस्था थी जिसका नाम था - प्रयोग थिएटर ग्रुप। इसे सुप्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के पुत्र विजय चौहान ने स्थापित किया था। इस संबंध में हटा के लोक संस्कृतविद डाॅ श्यामसुंदर दुबे ने भी जानकारी दी। युवा उत्सव में रूसी लेखक एन्तोन चेखव की कहानी का मंचन किया था। प्रयोग संस्था के बैनर तले नाटक ‘‘अंधायुग’’ एवं ‘‘फरार फौज’’ का मंचन भी किया था। ‘‘फरार फौज’’ की प्रस्तुति में विशेष बात यह थी कि वास्तविक जीप को चलाकर मंच पर लाया गया था जो अपने आप में सागर के मंच के लिए पहली घटना थी। नाटक ‘‘फरार फौज’’ में डॉ. विजय चौहान, जितेंद्र कुमार शर्मा, सत्येंद्र कुमार तिवारी, विवेकदत्त झा, मल्लिकार्जुन, रमेश दुबे, हंसराज नामदेव, कैलाश चंद्र सिंह आदि ने भी अभिनय किया था। इसमें रमेश दुबे की भी अहम भूमिका थी।
प्रयोग थिएटर ग्रुप में सचिव रह चुकी डाॅ. कल्पना सैनी तथा उनसे भी पहले से इस ग्रुप में से संबद्ध रहे उनके पति डाॅ. योगेन्द्र सैनी से विस्तृत चर्चा में प्रयोग संस्था के बारे में अनेक महत्वपूर्ण जानकारी मिली। जैसा कि डाॅ. योगेन्द्र सैनी जी ने बताया कि आरम्भ में महिला पात्र के लिए अभिनेत्रियां नहीं मिलती थीं अतः ऐसे नाटकों का चयन किया जाता था जिसमें सिर्फ़ पुरुष पात्र हों। प्रयोग के द्वारा ‘‘अंधेर नगरी चैपटराजा’’ और ‘‘मैकबेथ’’ जैसे नाटकों का सफलतापूर्वक कई बार मंचन किया गया। उस दिनों नाटकों के लिए किसी भी प्रकार की ग्रांट की व्यवस्था नहीं थी अतः नाट्यदल अपनी क्षमता के अनुसार पैसे कंट्रीब्यूट कर के मंचन के लिए सुविधाएं जुटाता था। बाद में कुछ महिलाएं इसमें बतौर अभिनेत्री जुड़ीं जिन्हें घर पहुंचाने का जिम्मा संस्था के पुरुषों का रहता था। इस संस्था से उमाकांत मिश्र, अनिल शर्मा आदि भी जुड़े रहे। वर्तमान में श्यामलम संस्था का संचालन कर रहे उमाकांत मिश्र ने उत्पल दत्त लिखित नाटक ‘‘फरार फौज’’ का मुझे तत्कालीन ब्रोशर दिखाया कराया। यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज़ है। ‘‘फरार फौज’’ नाटक का अनुवाद किया था - महेश प्रसाद जयसवाल, नरेन्द्र सिंह, मिहिर चटर्जी तथा विवेकदत्त झा ने। इसका निर्देशन भी मिहिर चटर्जी ने किया था। इसमें बलभद्र तिवारी, रघु ठाकुर, विष्णु पाठक, विवेकदत्त झा, श्रीनाथ शर्मा एवं उमाकांत मिश्र आदि का व्यवस्था से ले कर अभिनय तक सहयोग था। यह जानना दिलचस्प लगता है कि अधिकांश लोग जिनके नाम आज विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित व्यक्तियों के रूप में जानते हैं वे भी कभी रंगमंच से जुड़े रहे।
बाद में प्रो. विजय सिंह चौहान अमेरिका चले गए और इसी तरह कई अन्य सदस्य भी अपनी-अपनी आजीविका के कारण दूसरे शहरों में चले गए। संस्था को गतिमान रखने के लिए जितने लोगों की आवश्यकता थी, वे अब नहीं थे, परिणामतः प्रयोग संस्था बंद हो गई।

अन्वेषण थिएटर ग्रुप
सागर शहर के गोविंद नामदेव का चयन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली में हो गया था और वहां से निकलने के बाद वह वही रंग मंडल में शामिल होकर रंग कर्म करने लगे थे। उनका जब भी सागर घर आना होता था तो वह सागर में स्थानीय शौकिया रंग कर्मियों को रंगकर्म की बारीकियों से अवगत कराया करते थे। उनका यह कार्य कई युवाओं के लिए प्रेरक बना। आगे चल कर मुकेश तिवारी, आशुतोष राणा, श्रीवर्धन त्रिवेदी, महेश मेवाती भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली में चयनित हुए और रंगकर्म की विधा में प्रवीणता प्राप्त की। मुकेश तिवारी ने वहां से अध्ययन करने के बाद सागर आकर सबसे पहले नाटक ‘‘कोर्ट मार्शल’’ का निर्देशन किया। सन 1992 में अन्वेषण थिएटर ग्रुप की नींव पड़ी। अन्वेषण थिएटर ग्रुप यानी ’’अथग’’ शौकिया रंग कर्मियों के दल के रूप में मुकेश तिवारी, पंकज तिवारी, राकेश सोनी, जगदीश शर्मा, आनंद जैन, रविंद्र दुबे कक्का के निर्देशन में अनेक नाट्य प्रस्तुति सागर सहित दमोह, जबलपुर, बालाघाट, भोपाल, दिल्ली, चंडीगढ़ आदि जगहों पर लगातार किया जाता रहा। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से प्राप्त ग्रांट से 18 कलाकारों का संपूर्ण रंगमंडल बना चुके इस थेएटर ग्रुप के गुरु हैं गोविंद नामदेव। जो बाॅलीवुड और दक्षिण भारत की व्यावसायिक फिल्मों में एक ख्यातिलब्ध नाम हैं।
यहां प्रस्तुत अन्वेषण थिएटर ग्रुप की सम्पूर्ण जानकारी ग्रुप के वरिष्ठ रंगकर्मी रविन्द्र दुबे ‘कक्का के सौजन्य से प्राप्त है। उनका यह सहयोग इस लेख की लेखिका के लिए यानी मेरे लिए अति महत्वपूर्ण रहा है। इसमें कुछ जानकारी उनके उस लेख से साभार समाहित कर रही हूं जो डाॅ. लक्ष्मी पांडेय द्वारा संपादित ‘‘ये है बुंदेलखंड (भाग-दो)’’ में प्रकाशित हुआ था। रविन्द्र दुबे ‘कक्का के लेख से मुझे ज्ञात हुआ कि बा. व. कारंत ने सन 1997 में ‘‘प्रस्तुति परक कार्यशाला’’ में बुंदेलखंड के साथ ही मध्यप्रदेश (अविभाजित) के सुदूर क्षेत्रों से आए जैसे भोपाल, इटारसी बालाघाट, दुर्ग, भिलाई के  रंग कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया था। जयंत देशमुख द्वारा बनाए गए मुक्ताकाश मंच पर सिविल लाइन स्थित मलैया बंगला में लगातार 9 दिन तक इसकी प्रस्तुतियां की गई थी जिन्हें देखने गोविंद नामदेव के साथ मुंबई से सिने अभिनेता अनुपम खेर भी आए थे। हबीब तनवीर जी ने भी भारत भवन के रंग कर्मियों को सागर लाकर अन्वेषण थिएटर ग्रुप के साथ 10 दिवसीय 1998 में आल्हा गायन और रंग कार्यशाला की थी इसमें उन्होंने ‘‘मुद्राराक्षस’’ और ‘‘जिन लाहौर नहीं देख्या, ओ जन्माई नई’’ का पाठ और अभ्यास कराया था। इसमें प्रमुख रूप से अनूप जोशी, विभा मिश्रा, सरोज शर्मा आदि वरिष्ठ रंगकर्मी भी शामिल हुए थे। लेख पढ़ कर मुझे याद आया कि सिविल लाईन के मुक्ताकाश मंच में खेले गए ‘‘बेगम का तकिया’’ नाटक मैंने भी देखा था।
मुकेश तिवारी ने अन्वेषण थिएटर ग्रुप में प्रस्तुति पर 35 दिवसीय कार्यशाला आयोजित की थी, कि जिसके अंतर्गत 1996 में ‘‘मुख्यमंत्री’’ नामक नाटक का मंचन किया गया था। अन्वेषण थिएटर ग्रुप को भारतीय रंग महोत्सव में 2003 में प्रथम बार भाग लेने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। इसके बाद दूसरी बार 2024 में जगदीश शर्मा निर्देशित नाटक ‘‘सुदामा के चावल’’ की प्रस्तुति भारतीय रंग महोत्सव में की गई। अन्वेषण थिएटर ग्रुप के द्वारा 1997-98 में रंग कबीर नाट्य समारोह, 1999 में तीन दिवसीय नाट्योत्सव, 2000 में पांच दिवसीय ग्रीष्मकालीन नाट्य महोत्सव, 2018 में चार दिवसीय अन्वेषण नाट्य समारोह आयोजित कर के बाहर के थिएटर ग्रुपों की प्रस्तुतियां सागर में की गई।
वीर मधुकर शाह बुंदेला के गौरवपूर्ण कार्य और उनके जीवन पर फिल्म अभिनेता गोविंद नामदेव एक नाटक लिखा -‘‘मधुकर कौ कटक’’। इसका निर्देशन भी उन्होंने किया। उनके सह निर्देशक कर थे  मुंबई से आए डायरेक्टर संतोष तिवारी। एनएसडी, अथग और सागर विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में जो एक माह की वर्कशॉप की गई, उसी के प्रशिक्षणार्थियों को अभिनय के लिए चुना गया। यद्यपि कुछ अन्य लोग भी शामिल किया गया। इस नाटक ने सागर के जनमानस में गहरी पैंठ बनाई।
अन्वेषण थिएटर ग्रुप के सदस्य रहे राकेश सोनी ने सागर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में सेवारत रहते हुए विश्वविद्यालय के छात्रों को लेकर रंगकर्म जारी रखा तथा अनेक बार राष्ट्रीय युवा महोत्सव में प्रथम स्थान प्राप्त किया। अन्वेषण थिएटर ग्रुप ने अनेक रंगकर्मियों को न केवल प्रशिक्षित किया अपितु मंच भी प्रदान किया। अथग ने आशीष ज्योतिषी, पंकज सिंह जार्ज, पदम सिंह, अवधेश कुशवाहा, असरार अहमद, अमजद खान, कपिल नाहर, आशुतोष तिवारी, जयशेखर परोची, राकेश शुक्ला, शिवकांत ढिमोले, अतुल श्रीवास्तव, आशीष चैबे, बृजेश शर्मा, सचिन नायक आदि को स्थापना  दी।

तथागत नाट्य संस्था
अन्वेषण थिएटर ग्रुप द्वारा गोविंद नामदेव के निर्देशन में आयोजित की गई प्रस्तुति पर कार्यशाला 2013 में नए-नए अनेक रंग कर्मियों ने भाग लिया था इसमें लगभग 55 लोगों ने प्रशिक्षण पाया था। गोविंद नामदेव की कार्यशाला से प्रशिक्षण पाकर निकले कुछ तरुण रंग कर्मियों की टोली ने अन्य ऊर्जावान साथियों को जोड़ कर एक नाट्य ग्रुप बनाया जिसका नाम रखा ‘‘तथागत नाट्य संस्था’’। इस संस्था में शुभम उपाध्याय, राहुल वर्मा, आदित्य निर्मलकर, आशीष तिवारी, अप्रतिम मिश्रा, विश्वनाथ पटेल, संजय, आशा, दीपगंगा साहू, दीक्षा साहू आदि रंगकर्मी रहे हैं। आज भी तथागत थिएटर ग्रुप समय-समय पर नाट्य मंचन करता रहता है।
सागर का नाट्य संसार खूबियों एवं कर्मठता से भरपूर है। यहां संस्थाएं बनती-मिटती रहीं लेकिन नाट्य परिदृश्य किसी न किसी नाम का बैनर लेकर सतत जारी रहा। सागर की शेष नाट्य संस्थाओं के बारे में इस लेख के दूसरे और अंतिम भाग में अगले ‘‘चर्चा प्लस’’ में चर्चा करूंगी। फिलहाल इसे पढ़िए और कल्पना कीजिए सागर के नाट्य संसार के यशस्वी अतीत के बारे में। (क्रमशः)

Tuesday, December 13, 2022

सागर का नाट्य परिदृश्य | लेख | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह, नाट्यलेखिका एवं साहित्यकार

 

Dr (Miss) Sharad Singh, Author,
Novelist, Social Activist
& Drama Writer

लेख

सागर का नाट्य परिदृश्य

- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

नाट्यलेखिका एवं साहित्यकार


(इस लेख की लेखिका के दो नाटक संग्रह ‘‘आधी दुनिया पूरा धूप’’ तथा ‘‘गदर की चिंगारियां’’ प्रकाशित हो चुके हैं। इनके नाटक ‘‘छुईमुई डाॅट काॅम’’ का प्रसार भारती द्वारा देश के बड़े पांच शहरों में मंचन कराया जा चुका है। ये दूरदर्शन, रेडियो तथा यूनीसेफ के लिए भी नाटक लिख चुकी हैं।)                      ........................


सागर की भूमि साहित्य और प्रदर्शनकारी कलाओं के लिए अत्यंत उर्वर है। इस भूमि में कई नाटक रचे गए, कई नाटक मंचित हुए और कई रंगकर्मी देश की बड़ी-बड़ी नाट्य संस्थाओं एवं मिल्मी दुनिया तक पहुंचे हैं। लेकिन इस माटी का मोह उन्हें बार-बार सागर खींच लाता है। चाहे मुकेश तिवारी हों या गोविन्द नामदेव या फिर संगीत श्रीवास्तव ये सभी सागर आ कर नाट्यमंचन द्वारा अपने अतीत की स्मृतियों को ताज़ा करते हैं तथा युवा रंगकर्मियों को मार्ग दिखाते हैं। सागर में इप्टा की इकाई भी रही है जिसके अंतर्गत नुक्कड़ नाटक खेले गए किन्तु आज यहां इप्टा की सागर इकाई के बारे में जानकारी देने वालों की भी कहै। कारण कि लोग धीरे-धीरे अपनी-अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त होते चले गए। सागर के समूचे नाट्य परिदृश्य को जानने के लिए अतीत में झांकने पर पता चला कि आज सागर के नाट्य कौशल को जिस नाट्य संस्था ‘‘अथग’’ के रूप में ख्याति प्राप्त है, इससे पहले एक और नाट्य संस्था यहां बड़ी मेहनत से काम कर चुकी है, जिसका नाम था ‘‘प्रयोग’’। इस संस्था के बारे में सबसे पहले उमाकांत मिश्र जी ने मुझे बताया जो स्वयं उसके नाटकों में अभिनय किया करते थे। फिर जयशेखर परोचे ने चर्चा की। इस संस्था से जुड़े अनिल शर्मा के बारे में उनके भतीजे जो पत्रकारिता विभाग में रहे हैं, डाॅ राकेश शर्मा से चर्चा के दौरान उन्होंने डाॅ विनोद दीक्षित से चर्चा करने का सुझाव दिया। डाॅ विनोद दीक्षित ने बताया कि डाॅ. कल्पना सैनी प्रयोग संस्था की सेक्रेटरी रह चुकी हैं,अतः मुझे उनसे जानकारी लेनी चाहिए। डाॅ. कल्पना सैनी से फोन पर चर्चा के दौरान उन्होंने अपने पति योगेन्द्र सैनी से संवाद कराया। डाॅ. योगेन्द्र सैनी ने मुझे संस्था के बारे में अत्यंत विस्तृत जानकारी दी।

यह पूरा सिलसिला बताने के पीछे मेरा उद्देश्य यह है कि मैंने प्रयास किया है कि सागर का समूचा नाट्य परिदृश्य इस छोटे से लेख में आ जाए किन्तु इसे लिखते समय मुझे लग रहा है कि सागर का नाट्य परिदृश्य एक महासागर है और इसे छोटे- से इस लेख रूपी गागर में नहीं समाया जा सकता है। फिर भी प्रस्तुत हैं कुछ प्रमुख जानकारियां। जो नाम, संदर्भ, प्रसंग छूट रहे हैं, वे इरादतन नहीं वरन सीमावश छूट रहे हैं। 

सागर के वरिष्ठ रंगकर्मी रविंद्र दुबे कक्का से प्राप्त जानकारी के अनुसार सागर में पंडित स्वर्गीय श्री लोकनाथ सिला कारी द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व ‘‘दीवान हरदौल जू’’े नाम से एक नाटक लिखा गया था। 50 के दशक में लिखे गए इस नाटक का मंचन सागर के तत्कालीन रंगकर्मी लक्ष्मी नारायण सिलाकारी, सेन बंधुओं और सर्राफ आदि ने मिलकर किया था। इसी प्रकार इसी समय काल में एक और नाटक का मंचन भी सागर स्थित राधा टॉकीज से लगकर बने एक हॉल में किया गया था, जिसमें अभिनेता और अभिनेत्री के रूप में राजा दुबे एवं रामकली मिश्रण थे। इसके बाद एक उसी दौर में प्रभात भट्टाचार्य के निर्देशन में कालीबाड़ी मंदिर परिसर गोपालगंज में मंचित किया गया था। इस तरह एक दीर्घ परंपरा जुड़ी हुई है सागर के नाटय जगत से।


प्रयोग थिएटर ग्रुप

प्राप्त जानकारी के अनुसार सागर में अन्वेषण थिएटर ग्रुप के पूर्व एक और थिएटर संस्था थी जिसका नाम था - प्रयोग थिएटर ग्रुप। इसे सुप्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के पुत्र विजय चौहान ने स्थापित किया था। इस संबंध में हटा के लोक संस्कृतविद डाॅ श्यामसुंदर दुबे ने भी बताया। युवा उत्सव में चेखव की कहानी का मंचन किया था। प्रयोग संस्था के बैनर तले नाटक ‘‘अंधायुग’’ एवं ‘‘फरार फौज’’ का मंचन भी किया था और इस प्रस्तुति की एक खास बात यह थी कि जीप को चलाकर मंच पर लाया गया था जो अपने आप में सागर के मंच के लिए पहली घटना थी। नाटक ‘‘फरार फौज’’ में डॉ. विजय चौहान, जितेंद्र कुमार शर्मा, सत्येंद्र कुमार तिवारी, विवेकदत्त झा, मल्लिकार्जुन, रमेश दुबे, हंसराज नामदेव, कैलाश चंद्र सिंह आदि ने भी अभिनय किया था। इसमें रमेश दुबे ने मंच एवं मंच से प्रयोग किया था।

प्रयोग थिएटर ग्रुप में सचिव रह चुकी डाॅ. कल्पना सैनी तथा उनसे भी पहले से इस ग्रुप में से संबद्ध रहे उनके पति डाॅ. योगेन्द्र सैनी से विस्तृत चर्चा में प्रयोग संस्था के बारे में अनेक महत्वपूर्ण जानकारी मिली। उस समस्त जानकारी को इस सीमित लेख में दे पाना संभव नहीं है। अतः उस बारे में कभी अलग से स्वतंत्र लेख लिखूंगी। फिर भी कुछ बातें यहां देना चाहती हूं। जैसा कि डाॅ. योगेन्द्र सैनी जी ने बताया कि आरम्भ में महिला पात्र के लिए अभिनेत्रियां नहीं मिलती थीं अतः ऐसे नाटकों का चयन किया जाता था जिसमें सिर्फ़ पुरुष पात्र हों। प्रयोग के द्वारा ‘‘अंधेर नगरी चैपटराजा’’ और ‘‘मैकबेथ’’ जैसे नाटकों का सफलतापूर्वक कई बार मंचन किया गया। उस दिनों नाटकों के लिए किसी भी प्रकार की ग्रांट की व्यवस्था नहीं थी अतः नाट्यदल अपनी क्षमता के अनुसार पैसे कंट्रीब्यूट कर के मंचन के लिए सुविधाएं जुटाता था। बाद में कुछ महिलाएं इसमें बतौर अभिनेत्री जुड़ीं जिन्हें घर पहुंचाने का जिम्मा संस्था के पुरुषों का रहता था। इस संस्था उमाकांत मिश्र, अनिल शर्मा आदि भी जुड़े रहे। वर्तमान में श्यामलम संस्था का संचालन कर रहे उमाकांत मिश्र ने उत्पल दत्त लिखित नाटक ‘‘फरार फौज’’ का ब्रोशर उपलब्ध कराया। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है। ‘‘फरार फौज’’ नाटक का अनुवाद किया था - महेश प्रसाद जयसवाल, नरेन्द्र सिंह, मिहिर चटर्जी तथा विवेकदत्त झा ने। इसका निर्देशन भी मिहिर चटर्जी ने किया था। इसमें बलभद्र तिवारी, रघु ठाकुर, विष्णु पाठक, विवेकदत्त झा, श्रीनाथ शर्मा एवं उमाकांत मिश्र आदि का व्यवस्था से ले कर अभिनय तक सहयोग था।

बाद में प्रो. विजय सिंह चौहान अमेरिका चले गए और इसी तरह कई अन्य सदस्य भी अपनी-अपनी आजीविका के कारण दूसरे शहरों में चले गए। परिणामतः प्रयोग संस्था बंद हो गई। 


अन्वेषण थिएटर ग्रुप 

सागर शहर के गोविंद नामदेव का चयन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली में हो गया था और वहां से निकलने के बाद वह वही रंग मंडल में शामिल होकर रंग कर्म करने लगे थे उनका जब भी सागर घर आना होता था तो वह सागर में स्थानीय शौकिया रंग कर्मियों को रंगकर्म की बारीकियों से अवगत कराया करते थे इसी से प्रेरणा लेकर मुकेश तिवारी, आशुतोष राणा, श्रीवर्धन त्रिवेदी, महेश मेवाती भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली में चयनित हुए और रंगकर्म की विधा में प्रवीणता प्राप्त की। मुकेश तिवारी ने वहां से अध्ययन करने के बाद सागर आकर सबसे पहले नाटक ‘‘कोर्ट मार्शल’’ का निर्देशन किया। सन 1992 में अन्वेषण थिएटर ग्रुप की नींव पड़ी। अन्वेषण थिएटर ग्रुप यानी ’’अथग’’ शौकिया रंग कर्मियों का दल के रूप में मुकेश, पंकज तिवारी, राकेश सोनी, जगदीश शर्मा, आनंद जैन, रविंद्र दुबे कक्का, के निर्देशन में अनेक नाट्य प्रस्तुति सागर सहित दमोह, जबलपुर, बालाघाट, भोपाल, दिल्ली, चंडीगढ़ आदि जगहों पर लगातार करते हुए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से प्राप्त ग्रांट से 18 कलाकारों का संपूर्ण रंगमंडल बना चुका है, जिसके गुरु गोविंद नामदेव हैं।

यहां प्रस्तुत अन्वेषण थिएटर ग्रुप की सम्पूर्ण जानकारी ग्रुप के वरिष्ठ रंगकर्मी रविन्द्र दुबे ‘कक्का के सौजन्य से प्राप्त है। उनका यह सहयोग इस लेख की लेखिका के लिए अति महत्वपूर्ण रहा है। इसमें उनके उस लेख के आधार पर साभार समाहित कर रही हूं जो डाॅ. लक्ष्मी पांडेय द्वारा संपादित ‘‘ये है बुंदेलखंड (भाग-दो)’’ में प्रकाशित हुआ था। बा व कारंत ने सन 1997 में प्रस्तुति परक कार्यशाला में बुंदेलखंड के साथ ही अविभाजित मध्यप्रदेश के सुदूर क्षेत्रों से आए जैसे भोपाल, इटारसी बालाघाट, दुर्ग, भिलाई के रंग कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया था। जयंत देशमुख द्वारा बनाए गए मुक्ताकाश मंच पर सिविल लाइन स्थित मलैया बंगला में लगातार 9 दिन तक इसकी प्रस्तुतियां की गई थी जिन्हें देखने गोविंद नामदेव के साथ मुंबई से सिने अभिनेता अनुपम खेर भी आए थे। हबीब तनवीर जी ने भी भारत भवन के रंग कर्मियों को सागर लाकर अन्वेषण थिएटर ग्रुप के साथ 10 दिवसीय 1998 में आल्हा गायन और रंग कार्यशाला की थी इसमें उन्होंने ‘‘मुद्राराक्षस’’ और ‘‘जिन लाहौर नहीं देख्या, ओ जन्माई नई’’ का पाठ और अभ्यास कराया था। इसमें प्रमुख रूप से अनूप जोशी, विभा मिश्रा, सरोज शर्मा आदि वरिष्ठ रंगकर्मी भी शामिल हुए थे।

मुकेश तिवारी ने अन्वेषण थिएटर ग्रुप में प्रस्तुति पर 35 दिवसीय कार्यशाला आयोजित की थी, कि जिसके अंतर्गत 1996 में ‘‘मुख्यमंत्री’’ नामक नाटक का मंचन किया गया था। अन्वेषण थिएटर ग्रुप को भारतीय रंग महोत्सव में 2003 में प्रथम बार भाग लेने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। इसके बाद दूसरी बार 2024 में जगदीश शर्मा निर्देशित नाटक ‘‘सुदामा के चावल’’ की प्रस्तुति भारतीय रंग महोत्सव में की गई। अन्वेषण थिएटर ग्रुप के द्वारा 1997-98 में रंग कबीर नाट्य समारोह, 1999 में तीन दिवसीय नाट्योत्सव, 2000 में पांच दिवसीय ग्रीष्मकालीन नाट्य महोत्सव, 2018 में चार दिवसीय अन्वेषण नाट्य समारोह आयोजित कर के बाहर के थिएटर ग्रुपों की प्रस्तुतियां सागर में की गई। 

वीर मधुकर शाह बुंदेला के गौरवपूर्ण कार्य और उनके जीवन पर फिल्म अभिनेता गोविंद नामदेव एक नाटक लिखा -‘‘मधुकर कौ कटक’’। इसका निर्देशन भी उन्होंने किया। उनके सह निर्देशक कर थे  मुंबई से आए डायरेक्टर संतोष तिवारी। एनएसडी, अथग और सागर विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में जो एक माह की वर्कशॉप की गई, उसी के प्रशिक्षणार्थियों को अभिनय के लिए चुना गया। यद्यपि कुछ अन्य लोग भी शामिल किया गया। इस नाटक ने सागर के जनमानस में गहरी पैंठ बनाई। 

अन्वेषण थिएटर ग्रुप के सदस्य रहे राकेश सोनी ने सागर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में सेवारत रहते हुए विश्वविद्यालय के छात्रों को लेकर रंगकर्म जारी रखा तथा अनेक बार राष्ट्रीय युवा महोत्सव में प्रथम स्थान प्राप्त किया। अन्वेषण थिएटर ग्रुप ने अनेक रंगकर्मियों को न केवल प्रशिक्षित किया अपितु मंच भी प्रदान किया। अथग ने आशीष ज्योतिषी, पंकज सिंह जार्ज, पदम सिंह, अवधेश कुशवाहा, असरार अहमद, अमजद खान, कपिल नाहर, आशुतोष तिवारी, जयशेखर परोची, राकेश शुक्ला, शिवकांत ढिमोले, अतुल श्रीवास्तव, आशीष चौबे, बृजेश शर्मा, सचिन नायक आदि को स्थापना  दी। 

तथागत नाट्य संस्था

अन्वेषण थिएटर ग्रुप द्वारा गोविंद नामदेव के निर्देशन में आयोजित की गई प्रस्तुति पर कार्यशाला 2013 में नए-नए अनेक रंग कर्मियों ने भाग लिया था इसमें लगभग 55 लोगों ने प्रशिक्षण पाया था। गोविंद नामदेव की कार्यशाला से प्रशिक्षण पाकर निकले कुछ तरुण रंग कर्मियों की टोली ने अन्य ऊर्जावान साथियों को जोड़ कर एक नाट्य ग्रुप बनाया जिसका नाम रखा तथागत नाट्य संस्था। इस संस्था में शुभम उपाध्याय, राहुल वर्मा आशीष तिवारी अप्रतिम मिश्रा विश्वनाथ पटेल संजय आशा डीप गंगा साहू दीक्षा साहू आदित्य, निर्मलकर आदि रंगकर्मी रहे हैं। 

रंग थिएटर फोरम 

थिएटर फोरम कलर के विभिन्न क्षेत्रों के प्रगतिशील कलाकारों का समूह है। क्षेत्र के प्रमुख हिंदी थिएटर समूह में से एक रंग थिएटर फोरम सौंदर्य वाली रूप से नवीन और सामाजिक रूप से प्रासंगिक थिएटर के लिए प्रतिबद्ध है। 2008 में इसकी स्थापना के बाद से रंग थिएटर फोरम ने रंगमंच के प्रशिक्षण के क्षेत्र में अद्भुत कार्य करते हुए देश के अनेक हिस्सों में कार्यशाला का आयोजन किया है जिसमें देश-विदेश के अनेक जाने-माने विद्वानों ने प्रशिक्षण दिया है। थिएटर कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य नए कलाकारों को रंगकर्म के लिए आत्मनिर्भर बनाना है तथा  समकालीन मुद्दों और प्रचलित सामाजिक समस्याओं पर एक संवाद के निर्माण करने हेतु प्रशिक्षित करना है। रंग थिएटर फोरम ने विभिन्न सामाजिक राजनीतिक परिदृश्य के नाटकों का मंचन करते हुए क्षेत्रीय रंगमंच के दृश्य में भी खुद को स्थापित किया है। यह समूह समकालीनता के साथ मनोरंजन के बेहतरीन साधन प्रदान करते हुए हमारी समय की रूपरेखा को रेखांकित कर रहा है।

रंग थिएटर फोरम आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी जैसे प्रसिद्ध साहित्यकार एवं संस्कृतविद्  के नाटकों का भी मंचन कर चुका है। राधावल्लभ त्रिपाठी संस्कृत को आधुनिकता का संस्कार देने वाले विद्वान माने जाते हैं। उनके द्वारा लिखी गई कथा ‘‘विक्रमादित्य कथा’’ एक असाधारण कृति है। संस्कृत के महान गद्यकार महाकवि दंडी पद लालित्य के लिए विख्यात हैं। ‘‘दशकुमार चरित’’ उनकी चर्चित कृति है। परंतु राधावल्लभ त्रिपाठी को उनकी एक और संस्कृत कृति ‘‘विक्रमादित्य कथा’’ की जीर्ण-शीर्ण पांडुलिपि हाथ लग गई। इस कृति को हिंदी में औपन्यासिक रूप देकर डॉ त्रिपाठी ने एक और मूल कृति के स्वरूप की रक्षा की है और वहीं दूसरी ओर उसे एक मार्मिक कथा के रूप में प्रस्तुत किया है। इस कृति से उस युग का नया परिदृश्य उद्घाटित होता है। नाट्य शास्त्र संस्कृत नाटक कार्यशाला 03.23 मार्च 2018 को विश्वविद्यालय में ‘‘विक्रमादित्य कथा’’ का मंचन रंग  थिएटर फोरम द्वारा किया गया था।

फोरम द्वारा 01-15 फरवरी 2021 को प्रोडक्शन वर्कशॅाप आयोजित किया गया था जिसमें संगीत श्रीवास्तव जैसे रंगकर्मी ने आ कर प्रशिक्षण दिया था। संगीत श्रीवास्तव ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से वर्ष 2013 में रंगमंच तकनीक और परिकल्पना में विशेषज्ञता के साथ स्नातक उपाधि प्राप्त की। उसके बाद वे परिकल्पना प्रशिक्षक तथा मार्गदर्शक के रुप में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से जुड़ गए। साथ ही मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय, भारतेंदु नाट्य अकादमी, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय सिक्किम केंद्र आदि नाट्य प्रशिक्षण केंद्रों के शैक्षणिक कार्यक्रमों से भी जुड़े रहे हैं। संगीत श्रीवास्तव ने भारत और विदेश में कई प्रसिद्ध प्रस्तुति निर्माताओं के साथ एक प्रकाश परिकल्पक एवं दृश्य रचनाकार के रूप में सहयोग किया है। एक परिकल्प प्रस्तुति निर्माता और मिक्स मीडिया कलाकार के रूप में 14 देशों में 300 से अधिक प्रस्तुतियां कर चुके हैं। ऐसे रंगकर्मी का आ कर प्रशिक्षण देना सागर के युवा रंगकर्मियों के लिए विशेष अनुभव रहा।


रंग प्रयोग थिएटर ग्रुप

लोक एवं शास्त्रीय रंगमंच तथा लोक संगीत के संवर्धन के उद्देश्य से नगर के सृजन कर्मियों ने सन 2001 में रंग प्रयोग की स्थापना की रंग प्रयोग ने अपनी यात्रा के दौरान लोक एवं शास्त्रीय प्रदर्शनकारी कलाओं के प्रति ना केवल अभिरुचि को जगाया अपितु कार्यशाला हूं उच्च समूह एवं परीक्षाओं के माध्यम से इनके सघन प्रशिक्षण का कार्य भी किया क्षेत्रीय एवं भाषिक सीमाओं को दरकिनार कर मध्य प्रदेश की समस्त लोक एवं शास्त्रीय शैलियों पर केंद्रित प्रस्तुतियां रंग प्रयोग की विशिष्ट पहचान बन चुकी है सन 2001 में 45 दिवसीय नाट्य कार्यशाला तथा नाटक एक था गधा उर्फ अल्लाह दादा की प्रस्तुति नाटक जंगल के शहर की ओर का मंचन बाल प्रतिभाओं के प्रोत्साहन हेतु छह दिवसीय राज्यस्तरीय उत्सव सागर उत्सव 2003 नगर की प्रतिभाओं को अभिनय प्रशिक्षण हेतु श्री आलोक चटर्जी तथा छाऊ नृत्य प्रशिक्षण हेतु श्री माधव वारिक द्वारा सात दिवसीय सघन प्रशिक्षण कार्यशाला। नाटक ‘‘बोझा’’ का मंचन सिने  एवं टेली तकनीक का प्रयोग। ईदगाह जैसे नाटक का मंचन। राजकुमार रायकवार के निर्देशन में यह संस्था सागर तथा सागर से बाहर  निरंतर नाटक करती रहती है।


थर्ड आई परफॉर्मर्स

नाट्य संस्था ‘‘थर्ड आई परफॉर्मर्स’’ की स्थापना 24 मार्च 2020 को शहरी एवं राष्ट्रीय पटल पर कला एवं  कलाओं द्वारा शिक्षा के विकास पर ध्यान केंद्रित करने हेतु किया गया। संस्था का मुख्य उद्देश प्रदर्शनकारी कलाओं का संरक्षण एवं संवर्धन करने के साथ  लोक कलाओं तथा बुंदेली संस्कृति का प्रचार प्रसार करना भी है। सर्व समाज में निर्धन एवं पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए लोक कल्याण में भागीदारी भी हमारा उद्देश्य है ,कोरोना काल के पूर्व संस्था द्वारा 50 दिवसीय नाट्य कार्यशाला के तहत नाटक पीयूष मिश्रा द्वारा लिखित ‘‘गगन दमामा बाज्यो’’ तैयार कराया गया, जिसमे लगभग 40 प्रतिभागियों ने भाग लिया। डा. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक शाखा के संयुक्त तत्वाधान में शहर के विविन्न प्रायोजकों के साथ मिलकर इस नाटक की प्रस्तुति स्वर्ण जयंती सभागार हाल में की गई। वर्ष  2021 को 23 मार्च शहीद दिवस के उपलक्ष्य में संस्था द्वारा एक बार फिर नाटक ‘‘गगन दमामा बाज्यो’’ की तीन प्रस्तुति विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती सभागार में की गईं । अपनी स्थापना से ही यह संस्था नाट्यकला एवं शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने हेतु प्रयासरत है। 

अन्य नाट्य संस्थाएं

सागर में बंसी कॉल के साथ रंग कर्म करने के बाद आकर राजेश शिल्पाचार्य, पद्मसिंह, आनंद,  राजेश पंडित और राजकुमार रैकवार ने सागर में रंगकर्म की धारा प्रवाहित करने में अपना योगदान दिया। सागर में थर्डबेल, भारतीय नाट्य कला मंच, सरस, रंग प्रयोग, रंग खोज, युवा थिएटर ग्रुप, नाट्य परिषद, तरुण सांस्कृतिक आर्ट, दर्पण थिएटर ग्रुप आदि जैसे रंगकर्मियों के समूहों ने समय-समय पर नाटकों का मंचन करके सागर में नाट्य-मंचन की परंपरा को बनाए रखने में अपना महत्वूर्ण योगदान दिया है।

सागर में नाट्यविधा के सम्पन्नता से परिपूर्ण वर्तमान परिदृश्य को देख कर आश्वस्त हुआ जा सकता है कि यहां नाट्य विधा अभी और परवान चढ़ेगी और देश के नक्शे में अपनी अलग पहचान स्थापित करेगी।

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(12.12.2022)

Tuesday, February 22, 2022

चिरंजीव शिवोम ज्योतिषी की प्रथम वर्षगांठ पर आशीर्वाद समारोह - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मित्रो, सुखद एवं अपनत्व भरा अवसर... प्रिय अनुज प्रखर वक्ता, साहित्यकार, समाजसेवी एवं युवा नेता भाई आशीष ज्योतिषी एवं दमयंती ज्योतिषी के पुत्र अर्थात मेरे भतीजे चिरंजीव शिवोम की प्रथम वर्षगांठ पर एम एम गार्डन में आयोजित आशीर्वाद समारोह। दिनांक : 22.02.2022

अमित-कंचन चौबे विवाह आशीर्वाद समारोह - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

.     बुआ डॉ (सुश्री) शरद सिंह एवं भतीजा अमित चौबे
20.02.2022 ... बड़े भाई आदरणीय मणिकांत चौबे "बेलिहाज़" (नगर के प्रतिष्ठित पत्रकार, साहित्यकार, समाजसेवी और कांग्रेस नेता) के सुपुत्र यानी मेरे प्रिय भतीजे अमित चौबे के विवाहोपरांत आशीर्वाद समारोह में शामिल होना मेरे लिए विचित्र अनुभव भरा रहा। ऐसे किसी समारोह में पहली बार अकेली शामिल हुई लेकिन वहां सभी ने मेरी इस पीड़ा को महसूस करते हुए ढेर सारा अपनापन दिया। मैं आभारी हूं सबकी।
  🌷 प्रिय भतीजे अमित और प्रिय भतीजबहू कंचन को ढेरों आशीर्वाद एवं असीम शुभकामनाएं ❗️
🌷 इस नवदंपति का जीवन सदा ख़ुशियों से भरा रहे 🌷💐🌷
#marriagereception

Wednesday, September 29, 2021

डॉ (सुश्री) शरद सिंह स्मार्ट सिटी सागर विभाग "आजादी का अमृत महोत्सव"

 
स्मार्ट सिटी सागर विभाग "आजादी का अमृत महोत्सव" मना रहा है इसी तारतम्य में 29.09.2021 स्मार्ट सिटी कार्यालय में एक चर्चा आयोजित की गई जिसमें मैं भी आमंत्रित थी। नगर को 'स्मार्ट' बनाने की दिशा में सभी ने सीईओ श्री राहुल सिंह को अपने-अपने सुझाव दिए तथा विभाग के कमांडिंग सेंटर का अवलोकन भी किया। नगर की ज़रूरतों और नगर में किए जा रहे सुधार कार्यों को जानने, समझने के लिए इस तरह के परस्पर संवाद बेहद ज़रूरी होते हैं।
#DrSharadSingh
#SmartCitySagar
#CEO_RahulSingh

नवागत कलेक्टर श्री दीपक आर्य, आईएएस से उनके कार्यालय में सौजन्य भेंट

29.09.2021 को श्यामलम संस्था के अध्यक्ष श्री उमाकांत मिश्र जी के नेतृत्व में सागर के साहित्यकारों के एक प्रतिनिधि मंडल जिसमें मैं डॉ (सुश्री) शरद सिंह भी शामिल थी, ने सागर के नवागत कलेक्टर श्री दीपक आर्य, आईएएस से उनके कार्यालय में सौजन्य भेंट की। तस्वीर उसी अवसर की-

#SagarDistrict
#DeepakAryaCollector